पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३४२

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( ३१४ ) और थे और तब उसके बाद खाली जगह है। "शिव' शब्द के पहले मि० राइस ने पढ़ा था-"सिद्धम् जयति मट्टपट्टिदेवो वैज- यंती-धम्म महाराजे पति-कत सौझायिच्छपरा कदंबानाम् राजा" और इसी में मुझे जयतिमट-ध (म) महाजालिखे होने के भी कुछ चिन्ह मिलते हैं। इसके उपरांत मि० राइस ने जिसे "धिराजे" पढ़ा है, वह ठीक और साफ तरह से पढ़ा नहीं जाता, परंतु उसकी जगह पर मेरी समझ में यह पाठ है र (शा) म्मा अणप-ति' 'क। मि० राइस ने जो पति कद' आदि पढ़ा है. उसका कोई अर्थ नहीं होता। उन्होंने जिसे 'धि राजे पति कत' पढ़ा है, वह मेरीसमझ में र (शा)म्मा अणप-ति' है। मुझे इस बात में कुछ भी संदेह नहीं है कि "धम्ममहाराजो" के बाद (मयु)- रशाम्मा आणप (य)ति था। "राजा" से पहले "प" के बाद जो छः अक्षर और "क' के बाद जो चार अक्षर मिट से गए हैं, यदि उन्हें खूब अच्छी तरह रगड़ कर साफ किया जाय और तब उनकी प्रतिलिपि तैयार की जाय तो उनके वास्तविक स्वरूपों का पता चल सकता है । मयूरशर्मा पहला कदंब राजा था। उसी ने यह दान फिर से जारी किया या दोहराया था। परंतु यह कोई.आवश्यक निष्कर्ष नहीं हो सकता कि कदंवों के बाद तुरंत ही चुटु-चंश का राज्य प्रारंभ हो गया था। चुटुओं और कदंबों का परस्पर संबंध था और कदंब लोग चुटुओं की ही एक शाखा थे ( देखो ६ २००)। अवश्य ही इन दोनों के मध्य में कोई शत्रु भी प्रबल हो गया होगा और वह शत्रु पल्लवों के सिवा और कोई नहीं हो सकता। तालगुंड वाले शिलालेख को देखते हुए इस विषय में कल्पना या अनुमान के लिये कोई स्थान नहीं रह जाता, क्योंकि उसमें यह कहा गया है कि पल्लवों के राज्य