पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३४४

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(३१६) कौंडिन्यों का अपनी चंपावाली शाखा के साथ अवश्य ही संपर्क रहा होगा और वह संपर्क उनके लिये बहुत कुछ लाभदायक भी होता ही होगा। इस प्रकार ईसवी दूसरी, तीसरी और चौथी शताब्दियों में दक्षिण भारत में भी और उपनिवेशों में भी वे लोग सामाजिक नेता थे। ६१६४. पुराणों में दी हुई बातों से आभीरों का इतिहास बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता है। यद्यपि आभीरों की १० अथवा ७ पीढ़ियाँ कही गई हैं, परंतु फिर भी श्राभीर उनका राज्य-काल केवल ६७ वर्ष था। साधारणतः यही माना जाता है कि उस समय के सातवाहनों के समय में इन भाभीगे ने 'उस ईश्वरसेन की अधीनता में एक राज्य स्थापित किया था, जिसका शिलालेख हमें नासिक में मिलता है। उस शिलालेख में दो महत्त्वपूर्ण जानकारी की बातें मिलती हैं । ( १ ) जो ईश्वरसेन उसमें राजा कहा गया है और जिसके शासन-काल के नवें वर्ष में वह लेख उत्कीर्ण हुआ था, वह किसी राजा का लड़का नहीं था, बल्कि उसका पिता शिवदत्त एक सामान्य आभीर था (शिवदत्ताभीर- पुत्रस्य )। और (२) जिस महिला ने वह दान किया था और सभी तरह के रोगीसाधुओं की चिकित्सा आदि के लिये कुछ पंचायती संघों के पास धन जमा कर दिया था, उसने अपने आपको "गणपक विश्ववर्मन् की माता" और "गणपक रेभिल की पत्नी कहा है जिससे यह सूचित होता है कि उसके संबंधी किसी गण प्रजातंत्र के प्रधान थे। जिन आभीरों का साम्राज्य-भोगी सात-

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१. एपिग्राफिया इंडिका, खंड ८, पृ० ८८ ।