पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३४५

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(३१७) वाहनों के समय में उदय हुआ था, जान पड़ता है कि उनका एक गण या प्रजातंत्र था और उनमें ईश्वरसेन ऐसा प्रथम व्यक्ति हुआ था जिसने राजा (राजन) की उपाधि धारण की थी। उसके संबंध में यह विश्वास किया जाता है कि उसने सन् २३६ और २३६ ई० के मध्य में शक क्षत्रप को अधिकारच्युत करके निकाल दिया था। मत्स्यपुराण ( देखो $ १५५ ) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि विंध्यशक्ति के उदय के पहले अर्थात् सन् २४८ ई. के लगभग आमीरों का अंत हो गया था। ऐसा जान पड़ता है कि जिस समय ईश्वरसेन का उदय हुआ था, उसी समय से पुराण यह मान लेते हैं कि आभीरों का गण या प्रजातंत्री और अधीनता का काल समाप्त हो गया था। यदि ६७ वर्ष के अंदर ही दस अथवा सात आदमी बारी बारी से शासन के उत्तराधिकारी हों तो इसका अर्थ केवल यही हो सकता है कि उनमें गणतंत्र या प्रजातंत्र प्रचलित था और उसमें उसी तरह उत्तराधिकारियों या शासकों की पीढ़ियाँ होती थीं, जैसी पुष्यमित्रों तथा इसी प्रकार के दूसरे मित्रों में हुआ करती थीं जिनका उल्लेख पुराणों में है और प्रत्येक अधिकारी का शासन-काल इसी प्रकार अल्प हुआ करता था। जिस समय समुद्रगुप्त क्षेत्र में आता है, उस समय हम फिर आभीरों को गणतंत्री या प्रजातंत्री समाज के रूप में पाते हैं। ईश्वरसेन ने कदाचित् आभीर संघटन बदल डाला था और एक राजवंश स्थापित करने का प्रयत्न किया था। नासिक वाले शिला- लेख में इस बात का उल्लेख है कि स्वयं ईश्वरसेन के समय में ही गणपकों का अस्तित्व था, अर्थात् गणतंत्र या प्रजातंत्र प्रचलित था और उसका प्रधान गणपक कहलाता था। यद्यपि अधिकतर संभावना तो इसी बात की जान पड़ती है कि वह गणतंत्र के बाहर का एक नया और एकतंत्री शासक या राजा था, परंतु यह