( ३२०) और ३ इंच मोटी हैं। और यही नाप उन इंटों की भी है जो बुलंदीबाग में खोदकर निकाली गई हैं। लक्षणों से सिद्ध होता है कि इस स्थान पर सातवाहनों के साम्राज्य की किलेबंदीवाली राजधानी थी, जिनके सिक्के-जिनकी संख्या ४४ थी-एक मठ के भग्नावशेष में मैमारों के औजारों के साथ पाए गए थे थे। ६१६८. मि० हामिद कुरैशी और मि० लांगहर्ट ने इस स्थान पर बौद्धों के कुछ ऐसे स्तूपों के भग्नावशेष भी खोद निकाले हैं जिन पर अमरावती के ढंग की नक्काशी श्रांध्र देश के श्रीपर्वत है। वहाँ मि. कुरैशी ने अठारह शिलालेख का इक्ष्वाकु-बंश ढूंढ़ निकाले थे जिनमें से पंद्रह शिलालेख संगमरमर के पत्थरों पर खुदे हुए हैं। ये सत्र खंभे एक ऐसे महाचेतिय या बड़े स्तूप के चारों ओर गड़े थे जिसके अंदर महात्मा बुद्ध के मृत शरीर का कुछ अंश (दाँत या अस्थि आदि ) रक्षित था । शिलालेखों से पता चलता है कि उस स्थान का नाम श्रीपर्वत था। हम यह अनुश्रुति भी जानते हैं कि सुप्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु और विद्वान् नागार्जुन श्रीपर्वत पर चला गया था और वहीं उसकी मृत्यु हुई थी, और इस संबंध में एक बहुत ही अद्भुत बात यह है कि इस पहाड़ीका आजकल भी जो नाम (नागा- र्जुनीकोड ) प्रचलित है, उससे भी इस बात का समर्थन होता है। युआन-च्चांग ने लिखा है कि नागार्जुन सातवाहन राजा के दरवार १. श्रारकियालोजिकल सर्वे रिपोर्ट, १९२७-२८, पृ० १२१ । २. महा. बुद्ध के शरीर का वह अवशेष अब मिल गया है। देखो Modern Review (कलकत्ता ), १६३२, पृ०८८ ।
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