(३२१) ने यह में रहता था। सब शिलालेख पाली ढङ्ग की प्राकृत भाषा में हैं। पत्थर की कुछ इमारतें और असली इमारतें भी कुछ स्त्रियों की बनवाई हुई थीं; और ये सब इमारते भिक्षु और स्थपति आनंद के कहने से और उसीकी देख-रेख में बनवाई गई थीं। ये सब स्त्रियाँ इक्ष्वाकु ( इखाकु) राजवंश की थीं । सन् १८८२ ई० में जग्गय्य- पेट नामक स्थान में जो तीन शिलालेख मिले थे, उनसे हमें इक्ष्वाकु- वंश का पहले से ही पता लग चुका है; और डाक्टर बुहूर निश्चय किया था कि ये सब शिलालेख ईसवी तीसरी शताब्दी के हैं। मि० कुरैशी को जो अठारह शिलालेख मिले थे, उनसे पता चलता है कि राजवंश की कई स्त्रियाँ पक्की वौद्ध थीं, परंतु राजा लोग सनातनी हिंदू थे और उनकी राजधानी विजयपुरी पास ही उस घाटी में थी। इनमें से अधिकांश शिलालेख राजा सिरि- वीर पुरिसदत्त के शासनकाल के ही हैं जो उसके राज्यारोहण के छठे और अठारहवें वर्ष के बीच के हैं। जग्गय्यपेट में, जिसका समय संवत् २० है, एक शिलालेख महाराज वासिठीपुत्र सिरि १. Watters, २, २००, २०७ । २. इंडियन एंटिक्वेरी, खंड ११, पृ० २५६ । ३. श्रारकियालोजिकल सर्वे रिपोर्ट, १९२७-२८, पृ० ११७ ।
पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३४९
दिखावट