पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३५७

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(२२६) राज्य किया था, इसलिये हम कह सकते हैं कि इस वंश का अंत सन् २५०-२६० ई० के लगभग हुआ होगा और इस बात का मिलान पुराणों से भी हो जाता है; क्योंकि उनमें कहा गया है कि जिस समय विंध्यशक्ति का उदय हुआ था, उसी समय इक्ष्वाकु वंश का अंत हुआ था। सातवाहनों ने जिस समय चुटुओं और आभीरों की स्थापना की थी, लगभग उसी समय इक्ष्वाकुओं की भी स्थापना की थी। चुटु और आभीर लोग तो पश्चिम को रक्षा करते थे और इक्ष्वाकु लोग पूर्व की ओर नियुक्त किए गए थे । चाटमूल द्वितीय इस वंश का कदाचित् अंतिम राजा था। शिवस्कंद वर्मन् पल्लव के एक सामंत महाराज ( जिसे स्वामी पिता या बप्पस्वामिन् कहा गया है) के शासन-काल के दसवें वर्ष में हम देखते हैं कि आंधू देश पर पल्लव सरकार का अधिकार था अर्थात् सन् २७० ई० के लगभग ($$ १८०, १८७) इक्ष्वाकु लोग अज्ञात हो गए थे। अतः इन शासनों का समय लगभग इस प्रकार होगा- चाटमूल प्रथम (सन् २२०–२३० ई०) पुरिसदत ( सन् २३०-२५० ई०) चाटमूल द्वितीय (सन् २५०-२६० ई०) ६ १७२ क. श्रीपर्वत की कला में द्वारपाल के रूप में एक शक की मूर्ति मिलती है और इसका संबंध सातवाहन काल से ही हो सकता है । विरोधी और शत्रु शक को श्रीपर्वत और वेगी जो द्वारपाल का पद दिया गया है, उसी वाली कला से उसका समय निश्चित हो सकता है; और एक विहार के खंडहरों में जो सातवा- हन सिक्के पाए गए हैं, उनसे भी समय निश्चित हो सकता है। १. माडर्न रिव्यू, कलकत्ता, जुलाई १९३२, पृ० ८८ ।