पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३६०

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( ३३२) किया था। उनकी वह प्रणाली वास्तव में समस्त भारतवर्ष अर्थात् समस्त भारत और द्वीपस्थ भारत के लिये सार्वदेशिक, सामाजिक प्रणाली बन गई थी। जो एकता स्थापित करने में अशोक को भी विफल मनोरथ होना पड़ा था, वह एकता वाकाटकों और पल्लवों के समय में भारत में पूर्ण रूप से स्थापित हो गई थी। और सभ्यता की वही एकता बराबर अाज तक चली आ रही है। जो कांची चोलों की पुरानी राजधानी थी और जो उस समय पवित्र आर्यभूमि के बाहर मानी जाती थी, उसे इन पल्लवों ने दूसरी काशी बना डाला था और उनके शासन में रहकर दक्षिणी भारत भी हिंदुओं का उतना ही पवित्र देश बन गया था, जितना पवित्र उत्तरी भारत था। जो भारतवर्ष खारवेल के समय में कदाचित् उत्तरी भारत तक ही परिमित था', उसकी अब एक ऐसी नई व्याख्या बन गई थी जिसके अनुसार कन्याकुमारी तक का सारा देश उसके अंतर्गत आ जाता था । पहले आर्यावर्त और दक्षिणापथ दोनों एक दूसरे से बिलकुल अलग माने जाते थे पर अब उनका एक ही संयुक्त नाम भारतवर्ष हो गया था । और विष्णुपुराण में हिंदू इतिहास लेखक ने इस आशय का एक राष्ट्रीय गीत बनाकर सम्मिलित कर दिया था- "भारतवर्ष में जन्म लेनेवालों को देवता भी बधाई देते और उनसे ईर्ष्या करते हैं। स्वर्ग में देवता लोग भी यह गाते हैं कि १. एपिग्राफिया इंडिका, खंड २०, पृ० ६२, पंक्ति १० । २. विष्णुपुराण, खंड २, अ०३, श्लोक १-२३ ।