पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३६९

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गुच्छा या मुट्ठा; और इसका भी आशय बहुत से अंशों में जो “पल्लव” शब्द का होता है । असल नाम "वीर" जान पड़ता है जो आगे चलकर उसके पोते वीरवर्मन् के नाम में दोहराया गया है ( देखो १८१ और उसके आगे )। विंध्यशक्ति के दूसरे लड़के का नाम प्रवीर था जो कदाचित् छोटा था, क्योंकि उसने बहुत दिनों तक शासन किया था। जिस प्रकार प्रवीर ने अपने पुत्र का विवाह नाग सम्राट की कन्या के साथ किया था और इस प्रकार नाग साम्राज्य पर अधिकार प्राप्त किया था, उसी प्रकार वीर ने भी एक नाग राजकुमारी के साथ विवाह किया था और इस प्रकार वह आंध्र देश का राजा बनाया गया था। संभवतः उसका पिता नागों का सेनापति रहा होगा और उसी ने आंध्र देश पर विजय प्राप्त की होगी। पल्लव शिलालेख में यह बात बहुत ठीक कही गई है कि वीरकूर्च के पूर्वज नाग सम्राटों को उनके शासन कार्यों में सहायता दिया करते थे और इसका मतलब यह होता है कि वे लोग नाग साम्राज्य के अफसर या प्रधान कर्मचारी थे। हम यह बात पहले ही जान चुके हैं कि विंध्यशक्ति भी पहले केवल एक अफसर या प्रधान कर्मचारी था और कदाचित् नाग सम्राटों का प्रधान सेनापति था ( ६ ५६ ) । नाग राजा के शासन- कार्य के भार के संबंध में शिलालेख में "भार" शब्द आया है। और भार-शिव नाग में जो "भार' शब्द है, वह उक्त "भार" शब्द की प्रतिध्वनि भी हो सकता है और नहीं भी हो सकता। १. भू-भार-खेरालस-पन्नगेन्द्र-साहाय्य-निष्णात-भुजार्गलानाम् । वेलुरपलैयम् वाले प्लेट, श्लोक ४, S. I. I. २. ५०७-५०८ । [ स्थान नाम भू भारा के संबंध में देखो श्रागे परिशिष्ट क । ]