पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३७६

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(३४८) हीरहडगल्ली, जिसके संबंध की आज्ञा कांचीपुर से धर्ममहा एपि० इं०१. राजाधिराज ( शिव ) स्कंदवर्मन् २. प्राकृत में (प्रथम) ने अपने शासन-कान के 5वें वर्ष में प्रचलित की थी। दर्शी जिसके संबंध की आज्ञा 'दशनपुर एपि०ई०१.३०७, राजधानी (अधिष्ठान) से महाराज संस्कृत में वीरकोर्चवर्मन के प्रपौत्र ने प्रचलित की थी। ओमगोड़ जिसके संबंध की आज्ञा तांबाप से एपि०ई०१५. २५१, महाराज ( विजय ) स्कंदवर्मन् संस्कृत में (द्वितीय) ने अपने शासन-काल के ३३ वें वर्ष में प्रचलित की थी। ... इन राजाओं के उक्त दानपत्रों में दी हुई वंशावली से इस बात का बहुत सहज में पता चल जाता है कि प्रारंभिक पल्लवों में कौन- कौन से राजा और किस क्रम से हुए थे। हमें इस बात का पूर्ण निश्चय है कि स्कंदवर्मन प्रथम का पिता अथवा शिवस्कंदवर्मन का पिता वही कुमार विष्णु था जिसने अश्वमेध यज्ञ किया था और स्कंदवर्मन् प्रथम का पुत्र और उत्तराधिकारी वीरवर्मन् था जिसका लड़का और उत्तराधिकारी स्कंदवर्मन् द्वितीय था। कल्पना और अनुमान के लिये यदि कोई प्रश्न रह जाता है तो वह केवल वीरकोर्च की स्थिति के संबंध का ही है, जो अवश्य ही स्कंदवर्मन् प्रथम से पहले हुआ होगा, क्योंकि वही पल्लव-वश का संस्थापक था। यहाँ रायकोटा ( एपि० इं०, ५, ४६ ) और वेलुर- पलैयम (S. I. I. २, ५०७ ) वाले ताम्रलेखों से हमें सहायता मिलती है। यह बात तो सभी प्रमाणों से सिद्ध है कि पल्लव-वंश