पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३७८

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( ३५०) यही सिद्ध करना बाकी रह गया है कि कुमार विष्णु वही था, जिसे दर्शीवाले ताम्रलेख में वीरकोर्चवर्मन् कहा गया है, और तब यह सिद्ध हो जायगा कि वह स्कंदवर्मन् द्वितीय का वृद्ध- प्रपिता था। हम देखते हैं कि स्कंदवर्मन द्वितीय ने ही सबसे पहले दानपत्रों में संस्कृत का प्रयोग करना प्रारंभ किया था। दर्शीवाला ताम्रपत्र, जो संस्कृत में है, उसी का प्रचलित किया हुआ जान पड़ता है। प्रभावती गुप्ता और प्रवरसेन द्वितीय के ताम्रलेख, परवर्ती वाकाटक ताम्रलेखों और उससे भी पहले के अशोक के शिलालेखों से हम यह बात जानते हैं कि अभिलेखों आदि में एक ही व्यक्ति के दो नामों अथवा दोनों में से किसी एक नाम का प्रयोग हुआ करता था। स्कंदवर्मन प्रथम के पुत्र का नाम जो "वीर" के रूप में दोहराया गया है, उससे सिद्ध होता है कि वीरकूर्च ही कुमारविष्णु प्रथम था और वही स्कंदवर्मन प्रथम का पिता था और दादा का नाम पोते के नाम में दोहराया गया था । अतः आरंभिक वंशावली इस प्रकार होगी- १. [ वीरकोर्चवर्मन ] कुमार विष्णु ( दस वर्ष या इससे अधिक काल तक शासन किया था) I यह भी २. स्कंदवर्मन प्रथम जो "शिव" कहलाता था (आठ वर्प ३. ४८. में प्रकाशित हुई है)। इन भूलों और विशेषतः इनमें से अंतिम भूल के कारण पल्लव राजात्रों की पहचान और उनका इति- हास फिर से प्रस्तुत करने में बहुत गड़बड़ी पैदा हो गई ।