( ३५१) या इससे अधिक काल तक शासन किया था) | ३. वीरवर्मन ( इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता) | ४. स्कंदवर्मन द्वितीय या विजय (तेतीस वर्ष या इससे अधिक काल तक शासन किया था) स्कंदवर्मन् प्रथम ने अपने पिता का नाम नहीं दिया है, परंतु अपने पिता के नाम के स्थान पर उसने केवल "बप्प" शब्द दिया है, जिसका अर्थ है-पिता, क्योंकि बादवाले राजा भी अपने पिता के संबंध में इस "बप्प" शब्द का प्रयोग करते हुए पाए जाते हैं; यथा-बप्प भट्टारक पादभक्तः ( एपिग्राफिया इंडिका, १५, २५४ । इंडियन एंटिक्वेरी ५. ५१. १५५ )। नाम का पता स्कंदवर्मन द्वितीय के दानपत्र से चलता है (एपि० ३०, १५, २५१ ) । इस वंश के बहुत से परवर्ती अभिलेखों में बराबर यही कहा गया है कि इस वंश का संस्थापक वीरकूर्च था (और उसका नान अधि- कांश स्थानों में दो और पूर्वजो कालभत और चूतपल्लव' के १. क्या यह वही काल-भर्तृ तो नहीं है जिसके संबंध में पुराण में कहा गया है "तेषूत्सन्नेषु कालेन" [अर्थात् जब काल द्वारा ( मुरुड श्रादि.) परास्त हुए थे ? ] यदि यही बात हो तो पुराणों के अनुसार विंध्यशक्ति का, जिसका उदय काल के उपरांत हुअा या, असल नाम चूत-पल्लव था, और ऐसी अवस्था में काल एक नाग सेनापति और विंध्यशक्ति का पूर्वज रहा होगा ।
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