( ३५७) १५, २५४,८,१५६, इं० ए० ५, १५४) ८वर्ष या अधिक तक शासन किया । 1 ८. (विजय) विष्णुगोप द्वितीय M. E. R. १६१४, पृ०८२]' २ ६. बुद्धवर्मन् [एपि० इं०८ ५०, १४३] १. यह ताम्रलेख नरसरात्रोपेटट-वाला ताम्रलेख कहलाता है । भारत सरकार के लिपिवेत्ता ( Epigraphist ) से पत्र-व्यवहार करके मैंने पता लगाया है कि यह वही ताम्रलेख है जिसे गंटूरवाला ताम्रलेख या चुरावाला ताम्रलेख कहते हैं । इस समय यह ताम्रलेख जिसके पास है, उसने इसकी प्रतिलिपि नहीं लेने दी। इस पर कोई तिथि नहीं दी है। यह दानपत्र विजय-पलोत्कट नामक स्थान से सिंह- वर्मन् के पुत्र महाराज विष्णुगोप बर्मन् के पौत्र और कंदवर्मन् (अर्थात् स्कंदवर्मन् ) के प्रपौत्र राजा विजय विष्णुगोप वर्गन् ने उत्कीर्ण कराया था और इसमें उस दान का उल्लेख है जो उसने कुडूर के एक ब्राह्मण को दिया था। यह संस्कृत में है। २. जान पड़ता है कि बुद्धवर्मन् ने नं० ८ वाले (विजय विष्णुगोप
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