पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३८६

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(३५८) १०. कुमारविष्णु तृतीय ११. नंदिवर्मन (एपि० ई०८, [S. I. I. २, ५०; एपि० ५०१, ५०८ ] ८, १४३ ) १२. सिंहवर्मन [S. I. I. ५०८] वेलुरपलैयमवाले ताम्रलेखों (S I. I. २, ५०१ ) का उपयोग करते हुए हमने इस वंशावली को उस काल से भी आगे तक पहुँचा दिया है, जिस काल का हम उल्लेख कर रहे हैं। इन ताम्रलेखों से वंश के उस आरंभिक इतिहास का पता चलता है जिसका हम इस समय विवेचन कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त और कई दृष्टियों से भी ये ताम्रलेख महत्त्व के हैं। उनसे पता चलता है कि वंश का आरंभ वीरकूर्च से होता है; और साथ ही उनमें स्कंदवर्मन द्वितीय तक की वंशावली दी गई है। नंदिवर्मन् प्रथम के राज्यारोहण के संबंध में इससे यह महत्वपूर्ण सूचना मिलती है कि जब विष्णुगोप द्वितीय का देहांत हो गया था और दूसरे सब राजा भी नहीं रह गए थे, तब नंदिवर्मन सिंहासन पर बैठा था। इसका अर्थ यह है कि जब विष्णुगोप के वंश में भी कोई नहीं रह गया और कुमारविष्णु तृतीय का वंश भी मिट गया, तब नंदिवर्मन् को राज्य मिला था। उदयेंदिरम्वाले ताम्रलेखों (एपि० इं० ३, १४२ ) में एक नंदिवर्मन का उल्लेख है; और उसके संबंध में उनमें कहा गया है कि वह सिंहवर्मन द्वितीय ) के उपरांत राज्याधिकार ग्रहण किया था, क्योंकि उसके इस वर्णन से यही सूचित होता है-भर्ता भुवोभूदथ बुद्धवर्मा, जो S. I. I. २, ५०८ में दिया है।