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पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३९६

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( ३६८) किया था। दक्षिण में ब्राह्मण वंश बहुत संपन्न थे और राज- दरबारों में ऊँचे पदों पर रहते थे और राज्य करते थे। वे लोग अपना विशिष्ट स्थान रखते थे और राज-वंशों के साथ उनका घनिष्ठ संबंध था। आज तक दक्षिण में ऐयर और ऐयंगर वहाँ के असली रईस और सरदार हैं । आरंभिक शताब्दियों के ब्राह्मख शासकों को दबाकर पुनरुद्धार काल के वाकाटक-पल्लवों और गंगों ने उनका स्थान ग्रहण कर लिया था । और जिन ब्राह्मणों के साथ उन्होंने विवाह संबंध स्थापित किया था, वे दक्षिणी भारत के निर्माता थे, जिन्होंने दक्षिणी भारत में अपनी संस्कृति का प्रचार करके दक्षिणापथ को हिंदू भारत का अंतर्भुक्त अंग बना दिया था और वास्तव में उन्होंने भारतवर्ष की सीमा का सचमुच विस्तार करके समस्त दक्षिणी भारत को भी उसके अंतर्गत कर लिया था। ६१६०. इस समय हम लोग 'गंग वंश की वंशावली उस ताम्रलेख के आधार पर फिर से तैयार कर सकते हैं जो निस्संदेह रूप से गंगों का असली ताम्रलेख है और प्रारंभिक गंग वंशावली जिसे मि० राइस ( Mr. Rice ) ने एपि- ग्राफिया इंडिका, खंड १४, पृ० ३३१ में प्रकाशित किया था और जो चौथी शताब्दी के अंत अथवा पाँचवीं शताब्दी के आरंभ (अर्थात् लगभग सन् ४०० ई०) का लिखा हुआ है । इस वंशावली को पूरा करने और सही साबित करने के लिए मैंने दूसरे उल्लेखों के आधार पर इसमें एक और नाम बढ़ा दिया है। यह वंशावली इस प्रकार बनती है- कोंकणिवर्मन, धर्माधिराज