(३७६) ६२०१. पल्लवों ने जिस प्रकार इक्ष्वाकुओं को अधिकार-च्युत किया था, उसी प्रकार चुटु मानव्यों को भी अधिकार-च्युत किया था । इक्ष्वाकु लोग तो सदा के लिये अदृश्य हो गए थे, परंतु मानव्यों का एक बार फिर से उत्थान हुआ था । ज्योंही पहला अवसर मिला था, त्योंही मयूरशमन् मानव्य ने अपने पूर्वजों के देश पर फिर से अधिकार कर लिया था और "कदंब" नाम से एक नये राजवंश की स्थापना की थी। ६२०२ कदंबों ने अपने वंश की प्राचीन स्मृतियों को फिर से जाग्रत करने का प्रयत्न किया था। उन्होंने सातवाहनों के मल- वली देवता के नाम पर फिर से भूमि-दान दी थी; और तालगुड- वाले जिस तालाब और मंदिर का सातकर्णियों के साथ संबंध था, उस पर उन्होंने अपना अभिमानपूर्ण स्तंभ स्थापित कराया था और उससे भी अधिक अभिमानपूर्ण अपना शिलालेख अंकित कराया था। इसी प्रकार उन लोगों ने पश्चिम में सातवाहन राज्य की उत्तरी सीमा तक भी पहुँचने का प्रयत्न किया था। उनका यह प्रयत्न कई बार हुआ था। परंतु वाकाटक लोग उन्हें बराबर रोकते रहे । वाकाटकों ने बराबर विशेष प्रयत्नपूर्वक अपरांत का समुद्री प्रांत और वहाँ से होनेवाला पश्चिमी विदेशी व्यापार अपने ही हाथ में रखा। ६ २०३. इस प्रयत्न को हम सातवाहन-वाद कह सकते हैं और इसका मतलब यही है कि वे लोग सातवाहनों की सब बातें फिर से स्थापित करना चाहते थे और इस कंग और कदंबों की प्रयत्न के संबंध में कंग ने, जो समुद्रगुप्त स्थिति के समय में हुआ था, बहुत कुछ काम किया था। कंग उसी मयूरशर्मा का पुत्र और उत्तराधिकारी था। उसने ब्राह्मणों की "शर्मा" वाली उपाधि
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