(३७५) दान दोबारा किया गया था और इससे यह पता चलता है कि पहले कदंब राजा से पूर्व और हारितीपुत्र शिवस्कंदवर्मन् के उपरांत अर्थात् इन दोनों के मध्य में जो राजा हुआ था, उसने वह दान की हुई संपत्ति वापस लेकर फिर से अपने अधिकार में कर ली थी और वह बीचवाला राजा अथवा राजा लोग पल्लवों के सिवा और कोई नहीं हो सकते; क्योंकि इस बात का उल्लेख मिलता है कि मयूरशमन् ने पल्लवों से ही वह प्रदेश प्राप्त किया था और उसे प्राप्त करने के अन्यान्य कारणों में से एक कारण यह भी था कि वह चुटु मानव्यों के पुराने राजवंश का वंशधर था। इस दान-लेख पर उक्त राजा के शासन-काल का चौथा वर्ष अंकित है । मैं समझता हूँ कि वह मयूरशम्मन् का ही आज्ञापत्र था, क्योंकि प्लेट पर उसके नाम का कुछ अंश पढ़ा जाता है ( देखो ६१६२) । यहाँ वह अपने वंश का अधिकार प्रमाणित कर रहा था। उसने अपने वंश के प्राचीन देश पर अधिकार कर लिया था और अपने वंश का किया हुआ पुराना दान उसने फिर से दिया था। कौंडिन्यों को कदाचित् उसके पूर्वजों ने ही उस देश में बुलाकर बसाया था। और उन कौंडिन्यों के प्राचीन प्रतिष्ठित वंश के साथ मयूरशमन् के वंश के लोगों का बराबर तब तक संबंध चला आता था, क्योंकि दोबारा जिसे दान दिया गया था, वह दाता राजा का मामा ( मातुल ) कहा गया है। कहा है कि इन दोनों में कुछ ही वर्षों का अंतर है। परंतु वास्तव में इन दोनों में अपेक्षाकृत अधिक समय का अंतर है। दोनों की लिपियाँ भी भिन्न हैं । वह एक नई भाषा अर्थात् महाराष्ट्री है जिसका उससे पहले कभी किसी सरकारी मसौदे या अभिलेख में प्रयोग नहीं किया गया था।
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