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पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/४०६

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(३७८) वाले अंश से स्वयं अपनी भोजकट-वाली सीमाओं पर मिला हुआ था। कदंबों का विशेष महत्त्व सामाजिक क्षेत्र में है। वे लोग वाकाटकों और गुप्तों के बहुत पहले से दक्षिण में रहते आते थे। परंतु फिर भी नवीन सामाजिक पुनरुद्धार में उन्होंने एक नवीन शक्ति और नवीन तेज प्रदर्शित किया था और अपने क्षेत्र के अंदर उस पुनरुद्धार के संबंध में उन्होंने उतना ही अच्छा काम किया था, जितना गंगों और पल्लवों ने किया था। ६२०४. इस प्रकार उस समय का दक्षिण का इतिहास वस्तुतः दक्षिण में पहुँचे हुए नए और पुराने दोनों लोगों का इतिहास है और उन प्रयत्नों का इतिहास एक भारत का निर्माण है जो उन्होंने सारे देश में एक सर्व- सामान्य सभ्यता अर्थात् हिंदुत्व का प्रचार और स्थापना करने के लिये किए थे और वह प्रयत्न उत्तर में समाज का सुधार और पुनरुद्धार करने में बहुत अधिक सफल हुआ था। इन प्रयत्नों के कारण दक्षिण भारत इस प्रकार उत्तर भारत के साथ मिलकर एक हो गया था कि सचमुच भारतवर्ष की पुरानी व्याख्या फिर से चरितार्थ होने लग गई थी और समस्त दक्षिण भी फिर से भारतवर्ष के ही अंतर्गत समझा जाने लगा था । उत्तरी भारत के हिंदुओं ने दक्षिणी भारत की भाषा, लिपि, उपासना और संस्कृति का प्रवेश और प्रचार किया था। वहीं से उन लोगों ने द्वीपस्थ भारत में एक नवीन जीवन का संचार किया था। एक सर्वसामान्य संस्कृति से उन लोगों ने एक भारत का निर्माण किया था और उसी समय का बना हुआ एक भारत बराबर आज तक चला आ रहा है।