पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/४१०

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(३८२) ६ २०६. राष्ट्र के विचार पूरी तरह से बदल गए थे और लोगों की दृष्टि बहुत ही उच्च तथा उदार हो गई थी। यह मनस्तत्व प्रत्यक्ष रूप से स्वयं सम्राट से ही लोगों ने उच्च राष्ट्रीय दृष्टि ग्रहण किया था । उसके समय के हिंदू बहुत बड़े-बड़े काम सोचते और उठाते थे 1 उन्होंने बहुत ही उच्च, सुंदर और उदार साहित्य की सृष्टि की थी। साहित्यसेवी लोग अपने देश-वासियों के लिये साहि- त्यिक कुबेर और भारतवर्ष के बाहर रहनेवालों के लिये साहित्यिक साम्राज्य-निर्माता बन गए थे। कुमारजीव ने चीन पर साहित्यिक विजय प्राप्त की थी। कौडिन्य धर्म-प्रचारक ने कंबोडिया में एक सामाजिक और सांस्कृतिक एकाधिकार स्थापित किया था। व्यापारियों और कलाकारों ने भारतवर्ष को विदेशियों की दृष्टि में एक आश्चर्यमय देश बना दिया था। यहाँ की कला, साहित्य, भक्ति और राजनीति में स्त्रीत्व का कोई भाव नहीं था; जो कुछ था, वह सब पुरुषोचित और वीरोचित था । यहाँ वीर्यवान् देव- ताओं और युद्ध-प्रिय देवियों की मूर्तियाँ बनती थीं। यहाँ की कलम से सुंदर और वीर पुरुषों के आत्मज्ञान रखनेवाले तथा अभिमानी हिंदू योद्धाओं के चित्र अंकित होते थे। यहाँ के पंडित १. वह समुद्रगुप्त का समकालीन था और चीन गया था ( सन् ४०५-४१२) जहाँ उसने बौद्ध त्रिपिटक पर चीनी भाषा में भाष्य लिखाए थे । उसका किया हुअा वज्र-सूत्र का अनुवाद चीनी साहित्य में राष्ट्रीय प्राचीन उत्कृष्ट प्रथ माना जाता है, जिससे चीनी कवियों और दार्शनिकों को बहुत कुछ प्रोत्साहन और ज्ञान प्राप्त हुआ । देखो गाइल्स (Giles ),कृत Chinese Literature (चीन साहित्य ) पृ० ११४ ।