(३८३) और ब्राह्मण तलवार और कलम दोनों ही बहुत सहज में और कौशलपूर्वक चलाते थे। यहाँ बुद्धिबल और योग्यता का प्रभुत्व इतना अधिक बढ़ गया था, जितना उसके बाद फिर कभी इस देश में देखने में नहीं आया। ६२०७. संस्कृत यहाँ की सरकारी भाषा हो गई थी और वह बिलकुल एक नई भाषा बन गई थी । गुप्त सिक्कों और गुप्त मूर्तियों की तरह उसने भी सम्राट की प्रतिकृति खड़ी की थी; और वह इतनी अधिक भव्य तथा संगीतमयी हो गई थी, जितनी न तो उससे पहले ही कभी हुई थी और न कभी बाद में ही हुई थी। गुप्त सम्राट ने एक नई भाषा और वास्तव में एक नये राष्ट्र का निर्माण किया था। ६२०८. परंतु इसके लिये क्षेत्र पहले से ही भार-शिवों ने और उनसे भी बढ़कर वाकाटकों ने तैयार किया था। शुंग राजा भी अपने सरकारी अभिलेखों आदि में संस्कृति समुद्रगुप्त के भारत का का व्यवहार करने लगे थे। फिर सन् वीज-वपन-काल १५० के लगभग रुद्रदामन ने भी उसका प्रयोग किया था; परंतु जो काव्य-शैली चंपा (कंबोडिया) के शिलालेख में दिखाई देती है और जो समुद्रगुप्त की शैली का मानों पूर्व रूप थी, वह वाकाटक-काल की ही थी। वाकाटकों ने पहले ही एक अखिल भारतीय साम्राज्य की सृष्टि कर रखी थी। उन्होंने कुशनों को भगाकर एक कोने में कर दिया था। उन्होंने जन-साधारण की परंपरा- गत सैनिकता को और भी उन्नत किया था। इन्होंने शास्त्रों की उपयुक्त मर्यादा फिर से स्थापित की थी और उन्हें उनके न्याय-सिद्ध पद पर प्रतिष्ठित किया था। समुद्रगुप्त ने इससे
पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/४११
दिखावट