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पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/४२०

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(३६२ ) गया था, जिसने उन महात्मा बुद्ध को जन्म दिया था जो विश्व- जनीन धर्म और विश्वजनीन समानता के प्रवर्तक और पोषक थे। अब उस बीज-कोश का अस्तित्व ही मिटा दिया गया था, जिससे आगे चलकर भार-शिव या गुप्त लोग उत्पन्न हो सकते थे। राज- पूताने के गणतंत्र नष्ट हो गए थे और उनके स्थान पर केवल ऐसे राजपूत रह गए थे जो अपने गणतंत्री पूर्वजों की सभी परंपरागत बातें भूल गए थे और पंजाब के प्रजातंत्र नष्ट होकर ऐसे जाटों के रूप में परिवर्तित हो गए थे जो अपना सारा भूतकालीन वैभव गँवा चुके थे । जीवन-प्रदान करनेवाला तत्त्व ही नष्ट हो गया था। हिंदुओं ने समुद्रगुप्त का नाम कभी कृतज्ञतापूर्वक नहीं स्मरण किया और जिस समय अलबरूनी भारत में आया था, उस समय उसने लोगों से यही सुना था कि गुप्त लोग बहुत ही दुष्ट थे। यह उस चित्र का दूसरा अंग है। यद्यपि वे लोग व्यक्तिगत प्रजा के लिये बहुत अच्छे शासक थे, परंतु फिर भी हिंदुओं की राष्ट्र- संघटन संबंधी स्वतंत्रता के लिये वे नाशक ही सिद्ध हुए थे। $ २५२. विष्णुपुराण के इतिहास-लेखक का राजनीतिक सिद्धांत यह था कि वह कभी किसी के साथ शक्ति और बल का प्रयोग करना पसंद नहीं करता था; और उसकी कही हुई जो एक मात्र बात हिंदुओं को पसंद आ सकती थी, वह उस प्रकार की शासन-प्रणाली थी, जैसी भार-शिवों ने प्रचलित की थी, जिसमें सब राष्ट्रों का एक संघ स्थापित किया गया था और जिसमें प्रत्येक राष्ट्र को पूरी पूरी व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्राप्त थी। हिंद गण-तंत्रों में जो संघ-वाली शासन-प्रणाली किसी समय प्रचलित थी, उसी का विकसित और परिवद्धित रूप भारशिवों-वाले संघ का था। वह बराबरी का अधिकार रखनेवाले राष्ट्रों का एक संघ था, जिसमें