पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/४३३

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( ३६६) डेढ़ मील की दूरी पर है। उस स्थान पर और नागौद में मैं जितने आदमियों से मिला था, वे सब लोग इसका नाम "भूभरा" ही बतलाते थे। भूभरा गोंडों का गाँव है और इनकी आकृति वैसी ही होती है, जैसी भरहुत की मूर्तियों की है' । भरहुत और भूभरा दोनों ही नागौद रियासत में हैं और एक से दूसरे की सीधी दूरी लग- भग बीस मील है। दोनों के मध्य में उँचहरा है, जहाँ नागौद के राजाओं के रहने का किला है। भूभरा के मंदिर के चारों ओर ईंटों की बनी हुई एक दीवार थी। मंदिर के अवशिष्ट अंश के चारों ओर एक चौकोर घेरे में हजारों इंटें पड़ी हुई हैं। जिस जगह भूभरा की उत्कीर्ण ईटें (पूर्वी फाटक पर ) मैंने ईंटों के ढेर की जाँच की थी, उस जगह की अधिकांश ईटों पर मुझे लगभग सन् २०० ई० के ब्राह्मी अक्षर लिखे हुए मिले थे । मैं इस तरह की दो ईटें पटने के अजायबघर में ले आया हूँ। उस मंदिर के बनने का समय निश्चित करने में इन ईंटों से बहुत कुछ प्रामाणिक सहायता मिल सकती है। नीचे की ओर खुरदुरे भाग पर एक ईंट पर "दर्व-आरा (ल)' लिखा हुआ है और दूसरी ईंट पर पहली पंक्ति में "दर्व" और दूसरी पंक्ति में "आराला" लिखा है। दर्व' का अर्थ होता है साँप का फन; १. देखो प्लेट ६ स्त्रियों की श्राकृतियाँ और भी अधिक मिलती- जुलती होती हैं। २. देखो प्लेट ७ और ८; ईटों की सतह इसलिये कुछ छील दी गई है जिसमें फोटो लेने में अक्षर साफ श्रावें ।