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भूमरा मंदिर के जो पत्थर इस समय बचे हुए हैं, उन पर कोई
लेख नहीं है और इसी लिये मंदिर का समय निश्चित करने में
इंटों पर के लेख
बहुत
उपयोगी हैं । यह मंदिर सन् २०० ई० के
बाद का किसी तरह नहीं हो सकता; और जैसा कि अक्षरों के
रूपों से निश्चित रीति पर सूचित होता है, वह मंदिर सन् १५० -
२०० ई० के लगभग का होना चाहिए ।
भाकुल देव
मंदिर में जो मुख-लिंग उस समय जमीन पर लेटा हुआ पड़ा
है, उसका नाम मझगवाँ और उसके आस-पास के स्थानों में प्रच-
लित अनुश्रुति के अनुसार भाकुल देव है।
जान पड़ता है कि इसका असली नाम
भार-कुलदेव था, जिसका अर्थ होता है
भार वंश का देवता। ईंटों के समय से यह निष्कर्ष निकलता है
कि यह वही शिव-लिंग होगा, जिसके भार-शिव राजा के द्वारा
स्थापित होने का उल्लेख वाकाटक शिलालेखों में है। जो हो,
परंतु यह भार-शिवों के ही समय का है।
स्थान नाम
इसके आस-पास के कुछ स्थानों के नाम भी इसी प्रकार
के हैं, यथा--भरहता और भरौली। सतना के पास भरजुना
नामक एक स्थान है, जहाँ बहुत सी
भर और भार से युक्त प्राचीन मूर्तियाँ पाई जाती हैं। उसी क्षेत्र
में और इसी प्रकार के नामों वाले स्थानों
के बीच में सुप्रसिद्ध भरहुत नामक
स्थान भी है।
भूभरा ( थारी पाथर ) के सीमा सूचक स्तंभ-अभिलेख से.
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पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/४३९
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