(४०२) जो इस समय जंगलों में है, यह सूचित होता है कि गुप्त काल में गुप्त साम्राज्य और वाकाटक राज्य के मध्य इस क्षेत्र में अनुसंधान में भूभरा (गाँव) था । भूभरा और मझगवाँ होना चाहिए घने जंगलों में हैं। जब हम लोग लौटने लगे थे, तब हमने देखा था कि जिस रास्ते से हम लोग आए थे और वापस जारहे थे, उसी रास्ते पर हम लोगों के आने के बाद बड़े-बड़े चीतों का एक जोड़ा गया था, क्योंकि उनके पैरों के ताजे निशान वहाँ साफ दिखाई देते थे। मुझे सूचनाएँ मिली हैं कि उस पहाड़ी पर इस समय भी इसी तरह के और कई मंदिर वर्तमान हैं। इस पहाड़ी पर अच्छी तरह अनुसंधान होना चाहिए। भूभरा वाले मंदिर पर आज-कल की बर्बरता के कारण बहुत अत्याचार हुआ है। उसका शानदार दरवाजा, चौखटे के पत्थर और मूर्तियाँ आदि लोग उठा ले गए हैं। बर्बरता मतलब यह कि सारा मंदिर ही बिलकुल ढा दिया गया है। इसके कुछ अंश तो ले जाकर कलकत्ते के इंडियन म्यूजियम में पहुँचा दिए गए हैं और कुछ उचहरा के किले में ले जाकर रख दिए गए हैं, जहाँ बहुत से अंश नागौद की काउन्सिल के प्रेसिडेंट लाल साहब महाराज कुमार भारगवेंद्र सिंहजी की कृपा से सौभाग्यवश बच गए हैं और सुरक्षित हैं। पर हाँ, वे सब तितर-बितर हैं। सुंदर मुख-लिंग जंगल में एक ऐसे मंडप में बिलकुल फेंका हुआ पड़ा है. जो बड़े दरवाजे के हटा दिए जाने के कारण बिलकुल जीर्ण-शीर्ण हो गया है । उस मंदिर की वे मूर्तियाँ भी लोग वहाँ से उठा ले गए हैं, जो
पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/४४०
दिखावट