( ४०४ ) पड़ी हुई हैं और या लोग उन्हें उठा ले गए हैं। उनमें से कुछ मूर्तियाँ मेरे एक मित्र ने किसी तरह बचाकर रख ली हैं। पार्वती का मंदिर और शिव का मंदिर दोनों एक ही कारीगरों के बनाए हुए हैं और एक ही समय के हैं। मि० कोडरिंगटन का यह कथन ठीक नहीं है कि शिव के मंदिर पार्वती और शिव के का शिखर बाद का और अलग से बना मंदिर हुआ है (Ancient India पृ० ६१) । मैंने उन मंदिरों को खूब अच्छी तरह देखा है और उसके संबंध में एक ऐसे इंजीनियर की विशिष्ट सम्मतिभी मुझे प्राप्त है, जिन्हें मैं अपने साथ वहाँ ले गया था। भारतवर्ष में इस समय जितने मंदिर वर्तमान हैं, उनमें से यह शिखर-मंदिर सबसे पुराना और पहले का है और अपने उसी रूप में वर्तमान है, जिस रूप में वह पहले-पहल बना था। उसमें की नक्काशी और वास्तुकला-संबंधी दूसरी कारीगरियाँ गुप्त कला तथा उसके बाद की कला के पूर्व-रूप हैं। लिंग में जो शिव के मुख बने हुए हैं, वे परम उत्कृष्ट हैं । उनमें से एक मुख भैरव रूप का सूचक है और उसके तालू की सफाई आश्चर्यजनक है और उसकी बढ़िया कारीगरी का पता उस पर हाथ फेरने से चलता है। मैं आशा करता हूँ कि कोई कलाविद् उस स्थान पर पहुँचकर उस मंदिर ओर उसमें की मूर्तियों का खूब अच्छी तरह अध्ययन करेंगे और इमारतों तथा खंडहरों को बचाने का सरकारी तौर पर कोई प्रयत्न किया जायगा। १. देखो प्लेट १०॥
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