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पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/४४९

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समय (४०५) नचना की इमारतों का समय शिव की आकृति देखकर बहुत अच्छी तरह किया जा सकता है । दक्षिण की ओर जो मुख है, वह भैरव का है । भार-शिव लोग शिव का नचना के मंदिरों का उपासना उसके शिव या कल्याणकारक रूप में ही करते थे। भूभरा और नकटी (खोह) में और एक दूसरे स्थान पर, जिसका पता मैंने लगाया था ( देखो आगे), सब जगह शिव का वही रूप देखने में आता है। । परंतु इसके विपरीत वाकाटक रुद्रसेन प्रथम शिव की उपासना उसके महा-भैरव रूप में करता था ( Gupta Inscriptions पृ० २३६ )। मुख्य मंडप में भैरव की मूर्ति स्थापित करना वर्जित था (न मूलायतने कार्यो भैरवस्तु...। मत्स्यपुराण २५८. १४)। इसीलिये हम देखते हैं कि भैरव की वह विकट मूर्ति ( तीक्ष्णनासाग्रदशनः करालवदनो महान् । उक्त ०५८. १३) दूसरी मूर्तियों के साथ मिलाकर बनाई गई है । इसी प्रकार के दो और भैरव शिव जासो में मिलते हैं। उनमें से एक तो गाँव में एक चबूतरे पर है और उसी लाल पत्थर का बना हुआ है, जिसकी भूभरावाली मूर्तियाँ बनी हैं और दूसरा जासोवाले मंदिर में काले पत्थर का बना हुआ है ( जो किसी आस-पास के स्थान से लाकर वहाँ स्थापित कर दिया गया है)। नचनावाले मंदिर रुद्रसेन प्रथम के समय के हैं। क्योंकि पृथिवीषण शिव की उपासना महेश्वर रूप में करता था ( Gupta Inscri- १. देखो प्लेट ११ । २. देखो प्लेट १० में दिखलाए हुए दोनों मुख । गर्भ-गृह में अँधेरा रहता है, पर खिड़कियों से प्रकाश पाता है। यह फोटो बहुत कठिनता से लिया गया था ।