पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/४५०

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(४०६) ptions पृ० २३७) । पार्वती-मंदिर की खिड़कियों में से एक में खजूर के पेड़ के तनेवाली तर्ज है ' । यह तर्ज भूभरा में विशेष रूप से दिखाई देती है। स्व. श्रीयुक्त राखालदास बनर्जी ने बतलाया था कि बनावट और मसाले आदि के विचार से पार्वती और भूभरावाले मंदिर बिलकुल एक ही हैं (Memoir नं० १६, पृ०३)। नचनावाला मंदिर गुप्त कला से बहुत मिलता-जुलता है। वह मानो गुप्त कला तथा भूभरा के बीच की श्रृंखला है। भभरा गाँव के पास एक कूए से सटे हुए वृक्ष के नीचे मुझे एक मुख लिंग मिला था, जो उसी समय का बना हुआ है, जिस समय भूभरा-मझगवाँ का भाकुल देववाला नई खोज मंदिर बना था | गंज और नचना के बीच में मुझे पत्थर का एक चौकोर मंदिर मिला. था, जिसमें एक बावली पर कुछ मूर्तियाँ भी थीं; और उनकी बनावट की सब वातें ठीक वैसी ही हैं, जैसी नचनावाली मूर्तियों की हैं। उस मंदिर में एक सादा लिंग है जिस पर कोई मुख नहीं बना है। वह स्थान चौपाडा कहलाता है। नागौद के लाल साहब तथा दूसरे लोगों से मैंने कई ऐसी १. देखो प्लेट है। २. देखो प्लेट ११; यह एक विलक्षण बात है कि गया जिले में टिकारी के पास कोच नामक स्थान में मुझे इसी प्रकार की एक और मूर्ति मिली थी, यद्यपि वह परवर्ती काल की बनी हुई थी। इससे यह सूचित होता है कि भार-शिवों का प्रभाव मगध तक पड़ा था।