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स्थानीय अनुश्रुतियाँ सुनी थीं जो वहाँ उँचहरा, नचना और
नागौद में राज्य करनेवाले राज्यकुलों के
प्राचीन राजकुलों के संबंध में प्रचलित थीं। कहा जाता है कि
संबंध में स्थानीय नागौद और नचना के पुराने शासक भर
अनुश्रुतियाँ थे और उँचहरा के शासक संन्यासी थे।
ऐतिहासिक दृष्टि से ये संन्यासी वही हैं
जो शिलालेखों आदि में “परिव्राजक महाराज' कहे गए हैं। और
भर लोग संभवतः भार-शिव होंगे। इतिहास में चंदेलों के समय
से, बल्कि हम कह सकते हैं कि गुप्तों के समय से, आज तक भर
राजवंश के लिये कहीं कोई स्थान नहीं है-इतने दिनों के बीच
में किसी भर राजवंश ने वहाँ शासन नहीं किया था। यह हो
सकता है कि महाराज जयनाथ और उसके परिवार के लोग, जो
परिव्राजकों के पड़ोसी थे, भार-शिवों की एक शाखा रहे हों।
भूभरा में कोई भर गाँव नहीं है। परंतु लाल साहब ने, जो
नागौद के स्वर्गीय राजा साहब के दत्तक पुत्र हैं और उस जमीन
का चप्पा चप्पा जानते हैं, मुझसे कहा था कि इस राज्य के भर
लोग यज्ञोपवीत पहनते हैं और निम्न कोटि के क्षत्रिय माने जाते
हैं। भार-शिवों के साथ उनका संबंध हो भी सकता है और नहीं
भी हो सकता। मैं तो यही समझता हूँ कि भार-शिवों के साथ
उनका कोई संबंध नहीं था।
भरहुत में मैंने एक यह प्रवाद भी सुना था कि किसी समय
वहाँ कोई तेली-वंश भी राज्य करता था। इस तेली वंश से लोगों
का मतलब शायद तैलप से होगा, जैसा कि गाँगू और तेली
(गांगेयदेव और तैलप ) वाली कहावत में तैलप का तेली हो
गया है।
पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/४५१
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