(४११ ) पहली दोनों राजधानियाँ क्रमशः पल्लवों और आभीरों की थीं। शिलालेख में उनका क्रम गलत दिया है। त्रेकूट का उल्लेख करके लेखक ने उसके बाद आभीर रख दिया है। जान पड़ता है कि सेंद्रक केंद्र सातहनी में था, और यह बात हम पहले से ही जानते हैं कि सातहनी एक प्रांत का नाम था। लेख में राज- धानियों के ही नाम दिए गए हैं, इसलिये मैं समझता हूँ कि सातहनी भी किसी कस्बे का ही नाम होगा। डा० कृष्ण ने "तटी" में दीर्घ ईकार की मात्रा तो देखी थी (पृ० ५४ ), परंतु उन्होंने उसे "ट' के साथ न पढ़कर उसके आगेवाले "क" के साथ मिला दिया था। उन्होंने अपनी नकल में पल्लव के बाद लिखा तो "पु" ही है, परंतु उसे पढ़ा "प" है, और इसी के फलस्वरूप उन्होंने "पारियात्रिक" पाठ रखा है। उसके बादवाले “ण” पर उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया है। अपने "सकस्थाण' में उन्होंने जिसे "क" माना है, वह स्पष्ट रूप से "त" है। "ह" और "नि' जो उसके बाद के दो अक्षर हैं- को उन्होंने पूरी तरह से बिलकुल छोड़ ही दिया है। सेंद्रक में के एक शोशे को उन्होंने "य" का एक अंश मान लिया है जो वास्तव में वहाँ है ही नहीं। "र" पर इकार की मात्रा है, जिसे डा० कृष्ण ने अपने पुणाट में का "णा" पढ़ा है। अक्षर के अंत में दाहिनी ओर जो एक सीधी रेखा मान ली गई है, वह अक्षर का कोई अंग नहीं है; और यह बात वृहत्प्रदर्शक ताल की सहायता से स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। यहाँ यह बात ध्यान रखने की है कि मयूरशमन ने उस समय तक कोई राजकीय उपाधि नहीं धारण की थी।
पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/४५५
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