पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/४५४

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(४१० ) १-कदम्बाणाम् मयूरशम्मणा (विणिम्मि) अम् दूसरी और तीसरी पंक्तियों का पाठ उन्होंने इस प्रकार दिया है- २-तटाकं दूभ त्रेकूट अभीर पल्लव पारि- ३-यात्रिक सकस्था (ण) सयिन्दक पुनाट मोकरिणा डा० कृष्ण ने इन पंक्तियोंहका अनुवाद इस प्रकार दिया है- (मयूरशर्मन् ) जिसने त्रेकूट, अभीर, पल्लव, पारियात्रिक, सकस्थान, सयिन्दक, पुणाट और मोकरि को परास्त किया था। परंतु "मोकरिणा' का अर्थ होगा, मोकरि के द्वारा अर्थात् मयूरशमन मोकरि के द्वारा । “मोकरिणा" वास्तव में मयूर- शर्मन के विशेषण के रूप में है। इसके सिवा "दुभा” का अर्थ "परास्त किया था" नहीं हो सकता। जान पड़ता है कि यह पाठ शुद्ध नहीं है । फोटो को देखते हुए मेरी समझ में इन दोनों पंक्तियों का पाठ इस प्रकार होगा- (चिह्न-पहली और दूसरी पंक्ति के बीच में सूर्य और चंद्रमा के चिह्न हैं जो चिरस्थायित्व के सूचक हैं । ) २-तटि [.] कांची-कूट-भाभीर-पल्ल [पु] री ३-[ याति ] केणसातहनिस्थ सेंद्रक-पुरि-दमनकारि [णा]। तीनों पंक्तियों का अर्थ इस प्रकार होगा- कदंबों में के मयूरशर्मन् ने, जिसने कांची और त्रेकूट (त्रिकुट ) अर्थात् आमीरों और पल्लवों की राजधानियों-पर चढ़ाई की थी और जिसने सातहनी के पास' सेंद्रक राजधानी का दमन किया था, यह बाँध बनवाया था। १. अथवा शातहनी में ।