(२७ ) ६ २४. पुराण जब नाग शाखा का उल्लेख करते हुए "शिशु राजा" तक पहुँचते हैं, तब वे विंध्यशक्तिवाली शाखा का उल्लेख आरंभ कर देते हैं, और विंध्यशक्ति के पुत्र पुरिका और चणका का वर्णन करते हैं जिसके संबंध में वे यह में नाग दौहित्र और कहते हैं कि वह जन-साधारण में प्रवीर या प्रवीर प्रवरसेन बहुत बड़ा वीर माना जाता था । विष्णु पुराण में यह बात स्पष्ट रूप से कही गई है कि शिशु और प्रवीर दोनों मिलकर राज्य करते थे (शिशुक- प्रवारी)। वायुपुराण में इनके लिये बहुवचन क्रिया “भोक्ष्यन्ति" का प्रयोग हुआ है जो द्विवचन का प्राकृत रूप है । भागवत में शिशु का कहीं नाम ही नहीं है और केवल प्रवीर का उल्लेख है। इस प्रकार यहाँ यह सिद्ध होता है कि पौराणिक इतिहास-लेखक यहाँ यह प्रकट करते हैं कि शिशु ने अपने मातामह या नागराज का राज्य पाया था और उस दौहित्र शिशु के नाम पर विंध्यशक्ति का पुत्र प्रवीर शासन करता था। वायुपुराण और ब्रह्मांडपुराण में जो “च आपि" (विव्यशक्ति सुतस् चापि) शब्द आया है, उससे भी दोनों का मिलकर ही शासन करना सिद्ध होता है। विष्णुपुराण ने तो स्पष्ट रूप से ही शिशु को पहला स्थान दिया है और वायु तथा ब्रह्मांडपुराणों के वर्णनों में इसका पता केवल प्रसंग से चलता है। वायु और ब्रह्मांड पुराणों में कहा गया है कि प्रवीर ने ६० वर्षों तक पुरिकांचनका में अथवा पुरिका और चणका में राज्य किया था । यह पुरिका और चणकावाला अंतिम १ प्रवीरो नाम बीर्यवान् । २. पारजिटर, पृ० ५०, पाद टिप्पणी ३१ । ३. पारजिटर के प्राकृत रूपों "पुल का" और "चलका" का ध्यान
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