पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ३१ ) नहीं कहा जा सका है कि इसका पहला अक्षर क्या है। मैंने ईसवी पहली शताब्दी से लेकर तीसरी शताब्दी तक की लिपियों में आए हुए वैसे अक्षरों से उसका मिलान किया है, और मैं समझता हूँ कि वह अक्षर 'न" है। यह "न" प्रारंभिक कुशन ढंग का है। यह सिक्का 'नवस' है और नवस के ऊपर एक नाग या साँप का चित्र है जो फन फैलाए हुए है। यह नाग इस राजवंश का सूचक है जो इस वंश के और सिक्कों पर भी स्पष्ट रूप से दिया हुआ है ( देखो ६ २६ ख )। मैं इसे नव नाग का सिक्का मानता हूँ। यहाँ जो ताड़ का चिह्न है, वह इस वर्ग के दूसरे सिक्कों तथा भार-शिवों के स्मृति-चिह्नों पर भी पाया जाता है । ( देखी ६ ४६ क)। इस सिक्के ने मुद्रा-शास्त्र के ज्ञाताओं को चक्कर में डाल रखा है'। यह सिक्का बहुत दूर दूर तक पाया गया है। इससे यह समझा जाता है कि जिस राजा का यह सिक्का है, वह राजा है, वह राजा प्रमुख होगा और इतिहास में उसका महत्त्वपूर्ण स्थान होगा। पर अभी तक यह पता नहीं चलता था कि यह राजा कौन है । न इसका नाम ही ज्ञात होता था और न वंश ही। पर फिर भी इस राजा के संबंध में इतना अवश्य निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि- १. देखो E. I., खंड १, पृ० ३८८ के सामनेवाले प्लेट में पंद्रहवें वर्ष के नं० २ ए और पैंतीसवें वर्ष के नं. ७ बी में का 'न'। साथ ही मिलायो खंड २, पृ० २०५ में ७६ वें वर्ष के नं० २० का 'न' । १ मिलाश्रो विंसेंट स्मिथ कृत C. I. M., पृ० १६६-"ये देवस वर्ग के सिक्के, जिन पर अलग क्रमांक दिया गया है, चक्कर में डालने-