के साथ आए हुए 'तो' में हैं और कुशन संवत १८ के शिलालेख (क्षुणे गणातो ) में हैं। जानखट के शिलालेख की कई बातें वासुदेव के समय के शिलालेखों की बातों से कुछ पुरानी हैं; और कुछ बातें उसी समय की हैं, इसलिये हम कह सकते हैं कि यह शिलालेख कम से कम वासुदेव कुशन के समय के बाद का नहीं है। १ डा० विंसेंट स्मिथ के Catalogue of Coins में वीरसेन के जो सिक्के दिए हैं, उनका समय पढ़ने में मि० पारजिटर ने एक वाक्यांश का कुछ गलत अर्थ किया है। उन्होंने यह समझा था कि डा० स्मिथ ने यह बात मान ली है कि वीरसेन का समय लगभग सन् ३०० ई० है । पर उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि वीरसेन के जिन सिक्कों के चित्र कनिंघम और रैप्सन ने दिए हैं, वे सिक्के दूसरे हैं और आगे या बाद के वर्ग या विभाग में वीरसेन के नाम से जो सिक्के दिए गए हैं, वे उन सिक्कों से बिलकुल अलग हैं । [बाद- वाला वीरसेन वास्तव में प्रवरसेन है ($३०)] । इन दोनों प्रकार के सिक्कों का अंतर समझने में अभाग्यवश मि० पारजिटर से जो भूल हो गई है, उसका फल बुरा हुआ है । यद्यपि वे यह मानते हैं कि ई० पू० पहली शताब्दी से लेकर ई० दूसरी शताब्दी तक के शिलालेखों आदि में इ और व के तो यही रूप मिलते हैं, पर श का यह रूप केवल ईसवी दूसरी शताब्दी के ही लेखों में मिलता है; पर फिर भी वीरसेन के समय के संबंध में मि. विसेंट स्मिथ ने जो अनुमान किया है [ पर डा० स्मिथ का यह अनुमान उस वीरसेन के संबंध में कभी नहीं था,, जिसके विषय में हम यहाँ विवेचन कर रहे हैं । ] उससे इस शिलालेख के समय का मेल मिलाने के लिये मि० पारजिटर कहते हैं कि यह शिलालेख ईसवी तीसरी शताब्दी का होगा और बहुत संभव है कि
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