पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/६५

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( ३६ ) राजा नव की तरह वीरसेन ने भी अपने राज्य-काल के पहले वर्प से ही महाराज के समस्त शासनाधिकार अपने हाथ में ले उक्त शताब्दो के अंतिम भाग का हो । मि० पारजिटर के ध्यान में यह बात कभी नहीं पाई कि डा० स्मिथ ने दो वीरसेन माने थे 1 मि० पारजिटर ने इस शिलालेख का समय कुछ बाद का निर्धारित करने के दो कारण बतलाए हैं; पर उनमें से एक भी कारण जाँचने पर ठीक नहीं ठहरता । इनमें से एक कारण वे यह बतलाते हैं कि की जो मात्रा ऊपर की ओर कुछ झुकी हुई है, वह कुशन ढंग की नहीं बल्कि गुप्त ढंग की है । दूसरा कारण वे यह बतलाते हैं कि इस शिलालेख के अक्षरों का ऊपरी भाग अपेक्षाकृत कुछ मोटा है। पर सिद्धांततः भी और वस्तुतः भी मि० पारजिटर की ये दोनों ही बातें गलत हैं । किसी शिलालेख का काल निर्धारित करने के लिये उन्होंने यह सिद्धांत बना रखा है कि उस शिलालेख में अक्षरों के जो बाद के या नये रूप मिलते हैं, उनका व्यवहार कब से ( अर्थात् अमुक सयय से ) होने लगा था । इस सिद्धांत के संबंध में केवल मुझे ही ग्रापत्ति नहीं है, बल्कि मुझसे पहिले और भी कुछ लोगों ने इस पर आपत्ति की है। स्वयं डा० फ्लीट ने एक पाद-टिप्पणी में इस पर आपत्ति की है [E.I. ११; ८६ । किमी लेख में पहले के या पुराने ढंग के कुछ अक्षर भी मिल सकते हैं और उस दशा में उनका समय पहले से निश्चित समय की अपेक्षा और भी पुराना सिद्ध हो सकता है । यदि मि. पारजिटर के दोनों कारण वस्तुतः ठीक भी मान लिए जायें तो भी जिस लेख के अक्षरों को वे ई० पू० पहली शताब्दी से ईसवी दूसरो शताब्दी तक के मानते हैं, और उसके बाद के नहीं मानते, उन्हीं अक्षरों के आधार पर यह लेख ईसवी तीसरी शताब्दी का कभी माना नहीं जा सकता । वास्तविक घटनाओं के विचार से भी मि० पारजिटर का मत भ्रमपूर्ण पर