( ४७ ) चिह्न है। इस प्रकार यह सिक्का चरज नाग का है और उसके राज्यारोहण संवत् २८ का है। चर मंगल ग्रह का एक नाम है। क्रमांक ११ (प्लेट में के चित्र नं. १२) पर लिखा है-(श्री) हय नागश २०, १० । डा० स्मिथ ने इसमें जिसे र पढ़ा है और खड़ी पाई की तरह समझा है, वह संभवतः श्री का एक अंश है; जिसे उन्होंने थ पढ़ा है, वह वास्तव में ह है; और जिसे उन्होंने नागि पढ़ा है, वह नाग है। जिसे वह च पढ़ते हैं, उसे मैं ०० का चिह्न समझता हूँ और जिसे वह म समझते हैं, वह १० का सूचक चिह्न है। उसमें कहीं कोई त और स नहीं है और इसके संबंध में स्वयं उन्हें भी पहले से संदेह ही था। कटघरे के नीचे वाले भाग के कुछ अंश को डा० स्मिथ कोई अक्षर या लेख समझते थे। पीछे की ओर ऊपर वाले जिस चिह्न को डा० स्मिथ ने व पढ़ा था पर जिसके ठीक होने में उन्हें संदेह था, और उसके ऊपर जिसे उन्होंने य पढ़ा था, वह दोनों मिलकर साँड़ का चिह्न हैं। इस साँड़ के नीचे कोई अक्षर नहीं है। डा० स्मिथ ने इसके पिछले भाग का ऊपरी सिरा नीचे की ओर करके पढ़ा है। उस पर का सारा लेख इस प्रकार है--श्री हयनागश ३० । अब हम छोटे और कम दामवाले सिक्के पर विचार करते हैं जिसका क्रमांक ७ है और जो प्लेट नं० २३ का नवाँ चित्र है। डा० स्मिथ ने इसके सामने वाले भाग पर केवल एक अक्षर न पढ़ा था और पीछेवाले भाग पर अशोक लिपि का केवल ज पढ़ा था। जिसे वह अशोक लिपि का ज कहते हैं, वह ६ का सूचक चिह्न या अंक है और यह राज्यारोहण-संवत् है। सामने वाले भाग का लेख स य ह पढ़ा जाता है। यह लेख उलटी तरफ से पढ़ने पर ठीक पढ़ा जाता है और सिक्कों तथा मोहरों पर के लेखों 1
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