पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ४६ ) स्मिथ के क्रमांक १२, प्लेट २३ के चित्र नं० १३ का है। इस पर भी वही वृक्ष का चिह्न है जो औरों पर है। इसमें कात्र कठघरे के नीचे वाले भाग के पास से प्रारंभ होता है। उससे पहले और कोई अक्षर नहीं है । संभव है कि वहाँ और किसी प्रकार का कोई चिह्न रहा हो, पर इस संबंध में मैं निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कह सकता। डा० स्मिथ ने नागस में जिस अक्षर को स पढ़ा है, वह संभवतः स्य है। पीछे की ओर शेर के ऊपर सूर्य और चंद्रमा हैं--कोई मंडल नहीं है जो ऊपर की ओर उभड़े हुए हैं । इसका विशेष महत्त्व यही है कि इससे यह सिद्ध होता है कि संयुक्तप्रांत में इस प्रकार के नाग सिक्के बनते थे। अब मैं उस स्थान के संबंध में कुछ कहना चाहता हूँ जहाँ देव (शुद्ध रूप 'नव' ) वर्ग के सिक्के मिले हैं। डा० स्मिथ का मत है कि वे कोसम की टकसाल के जान पड़ते हैं, क्योंकि इस वर्ग का एक सिक्का उन्हें कौशांबी से मिला था; और उस पर वृक्ष का जो चिह्न है, उसका संबंध कौशांबी की टलसाल से प्रसिद्ध है। इस वर्ग के जिन सिक्कों के चित्र प्रकाशित हुए हैं, अब मैं उनके संबंध में अपने विचार बतलाता हूँ। क्रमांक - और ह प्लेट के चित्र नं० १० और ११ पर एक ही नाम अंकित है। वह चरज पढ़ा जाता है। नं. ८ के अक्षर भी चरज ही पढ़े जाते हैं । इसमें च और ज के बीच में जो र है, उसे डा० स्मिथ इसलिये पढ़ना भूल गए थे कि वह दूसरे अक्षरों की अपेक्षा कुछ पतला है। इस सिक्के पर पीछे की ओर प्लेट २३ चित्र नं० १० की दूसरी पंक्ति नागश पढ़ी जाती है । और उसी के पीछे की ओर शेर के ऊपर २० और ८ (२८) के सूचक अंक या १. २० के सूचक चिह्न के पहले एक खंडित अक्षर है जो संभवतः स = संवत् है।