(६०) ६२६. नागों की शासन-प्रणाली संघात्मक थी जिसमें नीचे लिखे राज्य सम्मिलित थे-(१) नागों के तीन मुख्य राजवंश, जिनमें से एक वंश भार-शिवों का था जो नागों की साशन-प्रणाली साम्राज्य के नेता और सम्राट थे और जिनके अधीन प्रतिनिधि-स्वरूप शासन करनेवाले और भी कई वंश थे। और (२) कई प्रजातंत्री राज्य भी उस संघ में संमिलित थे। पद्मावती और मथुरा भार-शिवों के द्वारा स्थापित दो शाखाएँ थीं और इन दोनों राजवंशों की दो अलग अलग उपाधियाँ थीं। पद्मावती वाला राजवंश टाक-वंश कहलाता था। यह नाम भाव-शतक में आया है जो गणपति नाग को समर्पित किया गया था (६३१) मथुरावाला वंश यदुवंश कहलाता था; और यह नाम कौमुदीमहोत्सव नामक नाटक में आया है और इसका रचना-काल भी वही है जो भाव- शतक का है । इन दोनों नामों से नव नागों के मूल का भी पता गया था। उधर अांधों के इतिहास में भी पुराणों में उनके मूल से लेकर वर्णन प्रारंभ किया गया है और उनके सम्राट पद पर आरूढ़ होने लेकर मगध के राजसिंहासन तक का वर्णन किया गया है। इस प्रकार पुराणों में किसी राजवंश का इतिहास लिखते समय अालोच- नात्मक दृष्टि से उनके मूल तक का वणन किया गया है और सम्राटों के वंशो का श्रारंभिक इतिहास तक दिया गया है। श्रांध्रों, विंध्यकों और नागों के संबंध में उन्होंने इसी प्रकार मूल से प्रारंभ करके उनका इतिहास दिया है और यदि पुराणों के कर्चा गुप्तों का भी पूरा इति- हास देने पाते तो वे उनके संबंध में भी ऐसा ही करते । तो भी विष्णु पुराण ( देखो आगे तीसरा भाग, ६ १२२) में गुप्तों का प्रारंभिक इतिहास देने का भी प्रयत्न किया गया है।
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