( ६३ ) शिलालेख में आर्यावर्त के शासक दो भागों में विभक्त किए गए हैं। एक वर्ग या भाग का आरंभ गणपति नाग से होता है। इस वर्ग में वे राजा आए हैं, जो समुद्रगुप्त के प्रथम आर्यावर्त्त युद्ध में मारे गए थे और दूसरा वर्ग उन राजाओं का है जिन पर दूसरे युद्ध के समय अथवा उसके बाद आक्रमण हुआ था और जो रुद्रदेव अर्थात् रुद्रसेन वाकाटक से आरंभ करके स्थान-क्रम या देश-क्रम से गिनाए गए हैं। प्रथम वर्ग में सबसे पहले गणपति नाग का नाम आया है। वाकाटकों के समय में वह नाग शासकों में सर्व-प्रधान था; और इस बात का समर्थन भावशतक से भी होता है (६३१)। मालवे और राजपूताने के प्रजातंत्र और संभवतः पंजाब का कुणिंदों का प्रजातंत्र भी, जिन्होंने भार-शिवों के समय में अपने अपने सिक्के चलाए थे, इस भार-शिव राज्य-संघ के स्वराज्यभोगी सदस्य थे (६४३)। ६२९ क. पुराणों में कहा है कि पद्मावती और मथुरा के नागों की, अथवा यदि विष्णु पुराण का मत लिया जाय तो पद्मावती, कांतिपुरी और मथुरा के नागों नागों की शाखाएँ की सात पीढ़ियों ने राज्य किया था (देखो ऊपर पृ० ५८ )। सिक्कों और शिलालेखों के आधार पर नीचे जो कोष्ठक दिया जाता है, उससे यह मत पूर्ण रूप से सिद्ध हो जाता है।
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