पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१००

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अजातशत्रु। मा दृश्यनीया, स्थान--काशी में श्यामा का गृह । , . . (श्यामा पैठी है) श्यामा-(स्वगत) “शैलेन्द्र ! यह तुमने क्या किया ! मेरी प्रणयलता पर कैसा पपाव किया। अभागे यन्धुल को ही क्या पड़ी थी कि उसने द्वन्दयुद्ध के आह्वान को स्वीकार कर लिया। कोशल फा प्रधान सेनापति छल से मारा गया है अब उसी के हाय से घायल होकर वह भी धन्दी हुआ। शैलेन्द्र। सुमे किस वरह बचाऊँ (सोचती है) (समुददस का प्रबंध) समुद्रदत्त-"श्यामा ! तुम्हारे रूप की प्रशसा सुनकर यहाँ 'चले पाने का साहस हुआ है। क्या मैंने कुछ अनुषित किया।" __ श्यामा-(. देम्पती हुई.) "नहीं भीमान , यह, सो आपका 'पर है। श्यामा प्रातिथ्य को मूल नहीं सकती-पह कुटीर मापकी सेवा के लिये मदेव प्रस्तुत है।, सम्मवत आप परदेशी हैं और इस नगर में नवागत व्यक्ति हैं । पैठिये-क्या माना है । 1" समुद्रदत्त (वैठवा शुओ)हा सुन्दरी, मैं नवागत व्यक्ति है, किन्तु एक पार और भो चुका हूँ। मी तुम्हारी रूप की