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पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१०१

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अदुसरा। बाजा ने मुझे पता बनाया था। अब इसमें जलने के लिये श्रामा हूँ । मला इतनी भी कृपा होगी ?" श्यामा-"मैं पाप से विनती करती हूँ कि पहिले आप ठरे छोइये और फुछ थकावट मिटाइये, फिर बातें होंगी। विजया ! भीमान् फी आशा पूर्ण कर और इन्हें विश्राम " (धिगया प्रती और समुदरत को खिवा गाती है) (एक रासो का प्रवेश) सी-"स्वामिनी ! दण्डनायक ने कहा है कि श्यामा की । माझा ही मेरे लिये सब कुछ है । हजार मोहरों की भावश्यकता नहीं, फेवल एक मनुष्य उसके स्थान में चाहिये । क्योंकि सेनापति फी हत्या हो गई है और यह वात मी छिपी नहीं है कि शैलेन्द्र पकड़ा गया है। सय, ससका कोई प्रतिनिधि चाहिये, जो सूली पर रावो रात पढ़ा दिया जाय। अभी किसी ने उसे पहचाना भी नहीं है। श्यामा-"अच्छा, सुन चुकी। जा शीघ्र वाघ का उपक्रम ठीक कर । एक परे मम्भ्रान्स समन भाये हैं। शीघ आ, देर न कर-" (रासी जातीरे) (स्वगत ) "स्वर्ण पितर में भी श्यामा को क्या यह सुख मिलेगा जो उसे हरी डालों पर कसैले फलों को पम्पने में मिलवा है। मुरूमीलगाम्न में अपने छोटे २ पख फैलाकर मव वह सदती है सब जैसी उसकी सुरीली तान होती है उसके सामने सो सोने के