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पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१०८

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अजातशत्रु। मल्लिका-"जय हो । अमिताम की जय हो-दासी चन्दन फरती है। सारिपुत्र-"शान्ति मिले-सन्सोप में तृप्ति हो । देवी । हम आगये-मिक्षा प्रस्तुत है ? मल्लिका-“देव ! यथाशक्ति प्रस्तुत है। पावन कीजिये । चलिये" (दासी ना पाती है, मपितका पैर धुनाती है । दोनों बैठते है, और मोगम करते हैं। साते समय इप का पात्र दासी के हाप से गिर फरार नाता है। मषिसफा से दूसरा मे को कहती है।) - आनन्द-"देवि ! दासी का अपराध क्षमा करना-जितनी वस्तुएँ धनती हैं वे सय बिगड़ने ही के लिये । यही उसका परिणाम था, उसमें बेचारी दासी को कलङ्क मात्र था।" मल्लिका-"यथार्य है। सारिपुत्र-"आनन्द | क्या तुमने समझा कि मल्लिका दासी पर कष्ट है ? क्या तुमने इन्हें अभी नहीं पहिचाना १ घाँदी का पाय टूटने से इन्हें क्या क्षोम होगा-स्वामी के मारे जाने का समाचार अभी हम लोगों के आने के थोड़ी ही देर-पहिने आया है। फिन्तु यह भी इन्हें अपने फव्य से विचलित नहीं कर सका। फिर, यह तो एक धातुपात्र मात्र था। (मल्लिका से)- शान्ति ) फरणे, सू इस ससार को पवित्र - फरसी है। देवी, वेरा धैर्य सराहनीय है। आनन्द । लो, इस मूर्तिमती धर्मपरायणवा से कर्तव्य की शिक्षा लो ।। - ७४