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पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/११४

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अजातशत्रु। पिम्पसार--(स्नड़ा होफर ) "छलना ! हमने राजदस्त बोर दिया है, किन्तु मनुप्यता ने अभी हमें नहीं परित्याग किया है। सहन की भी सीमा होती है। अधम नारी-पामरी, चली जा। तुझे लञ्चा नहीं-धर्यर लिच्छिवी रक्क- ___यासपी-बहिन जाओ, सिंहासन पर बैठ कर राज्य काये येयो । व्यर्थ झगढ़ने से तुम्हें क्या सुख मिलेगा। और अधिक सुम्ह क्या कहूँ। तुम्हारी बुद्धि ।” (पलना नाती है) । वासवी-(प्रार्थना करती है) ___ दाता सुमति दीजिये । मानय हर्दय यीच करुना से सींच कर। , योधने विषक योन, प्रफुरित फीधिये ॥ . .. . 1दाता मुमति दीजिये । (नोवक का मवेश)! " , "जीवक जय होय देव " - - ... . . विम्बसारे-"जीवक, स्वागत । बन्धु, तुम यो समय पर आये । इस समय ईदय पदा उद्विग्न था। कोई नया समाचा जीवक कौशाम्या के समाचार सो लिख कर भेज युका' नया समाचार यह है कि मागन्धी का सथ पार्यन्त खुले 'गर सनामा