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अङ्कतीसरा दृश्यपहिला स्थान-मगध में राजकीय मषन । (पानमा और देवदत्त) छलना-"धूर्स | तेरी प्रवञ्चना से मैं इस दगा को प्राप्त हुई, पुत्र यदी होकर पिवेश गया और पति को मैं स्वय बन्दी बनाये हूँ। पाखण्ड, सूने ही यह चक रचा है।" देवदत्त-"प्रमागिनी! क्या तुमे रामशक्ति का घमस है ? जो, हम परिमानकों से इस तरह की बातें करती है। तेरी राज लिप्सा और महत्त्वामाशा ने ही सम से सय कुछ कराया है ! स् दूसरे पर क्यो दोपारोपण करती है, क्या मुझे राज्य भोगना है ?" छलना-"पास्त्रएस ! जब तू ने धर्म के नामपर उरोजित फरफे मुझे कुशिक्षा दी, तप नहीं सोचा था। गौवम को फल किस करने के लिये कौन प्रावस्ती गया था और फिसने मतवाला छायी दौड़ा कर सनके माण लेने की चेष्टा की थी ओह! मैं फिस १०२