भरतीसरा। भ्रान्ति में थी। नी चाहता है कि इस नरपिथ अमी मिट्टी में मिला हूँ। प्रतिहारी" । प्रविहारी-(प्रवेश करफे) 'महादेवी की अय हो। क्या आशा है। छलना-"अमी इस मुड़िये को धन्दी पनामो पौर यासपी को पफद लाभो।" (प्रतिपरी इनित करता है, देवदत्त पन्दी होता है) देवदच-"इसका फल तुझे मिलेगा।" छनना-"पायज पाघिनी को भय दिखाता है। आपाद को पहाड़ी नदी को हाथों से रोक लेना चाहता है। देवदत्त । ध्यान रखना इस अवस्था में नारी क्या नहीं कर सकती हैं। प्रय तेरा अभिशाप मुझे नहीं हरा सकता। सू अपने कर्म भोगने को प्रस्तुत हो मा ।” (वासवी का मषेय) छलना-"भय तो सुम्हारा पय सन्तुष्ट हुभा ।" वासवी-"क्या फहवी हो छलना ? अजात पदी हो गया हो मुझे सुख मिला, यह बात फैसे तुम्हारे मुख से निकली १ प्या यह मेरा पुत्र नहीं है ?" छलना-"मीठे मुंह की वाइन ! थम मेरी यातों से बड़ी नही होने की ! ओह इतनी साहस, इसनी सूट पातुरी। माज में मस दय को निकाल लेगी, जिसमें यह सब मरे थे। बासी सावधान ! मैं मूवी सिंहनी हो रही हूँ -
पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१३७
दिखावट