पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१५६

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अजातशत्रु। के अनन्तर उन्हें जिस शिक्षा की आवश्यकता है वह स्नेह शीवलवा सहन शीलता और सदाचार का पाठ उन्हें स्त्रियों से ही सीम्बना होगा। हमारा यह कर्तव्य है । व्यर्थ स्वसन्प्रवा और समानता का अहफार करके उस अपने अधिकार से हमको वंचित न होना पाहिए । चलो, थाज अपने स्वामी से क्षमा माँगो। आज सुना है कि अजाप्त और पाजिरा का व्याह होने वाला है। तुम मी उस सत्सव में अपने घर को सूना मत रखो । चलो " शफिमप्ती-"भापफी आक्षा शिरोधाये है देवी " _फारायण-"तो मैं आना चाहता हूँ। क्योंकि मुझे शीघ्र पहुँचना चाहिये । पेम्बिये, पैतालिकों की वीणा बजने लगी। सम्म थत महागज शीघ्रही मिहासत पर पाया चाहते हैं। (राज कुमार विरुद्धक से ) राजकुमार ! मैं पाप से जमा पाहता हैं, क्योंकि आप जिस विद्रोह के लिये मुझे माझा ये गये ये मैं उसे फरने में असमर्थ या-अपने राष्ट्र के विरुख यदि आप अस्त्र प्रहण न करते तो सम्भवत में आपका अनुगामी हो जाता, क्योंकि मेरे हम्य में भी प्रविहिमा थी। किंतु पैसा नहीं हो सफा । उसमें मेरा श्रपराध नहीं। विरुद्ध फ-"उदार सेनापति मैं हय मे तुम्हारी प्रशंसा करता हूँ। और स्वय सुमसे हमा माँगता हूँ।" फारायण-"मैं सेवक हूँ युषराज !" (माता) { पटपरिवर्मन)