पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महतीसरा दश्यपाचवा स्थान-मोशन की राजसमा । (परदे वेप में ममातरा और वामिग तथा प्रसेमरित शक्तिमती-मझिका विमा, वासवी मोर पारायण का प्रवेण) मतिका-"पघाई है महाराज ! यह शुम सम्म्घ आनन्द- मय हो। प्रसेन०-* देवी ! भापकी असीम अनुकम्पा है, जो मेरे से अघम व्यक्ति पर इतना स्नेह ! पतितपावनी, सुम धन्य हो !" मलिफा-"किन्तु महाराज ! मेरी एक प्रार्थना है !" । प्रसेन०--" भापकी प्राक्षा शिरोधार्य है भगवती मल्लिका-" इस आपकी पत्नी परित्यकाशभिमसी का क्या दोप है ? इस शुभ अवसर पर यह विवाद उठाना यपपि ठीक नहीं है तो भी ॥ मसेनः- इसका प्रमाण तो यह स्वय है। उसने क्या क्या नहीं किया वह क्या किसी से छिपा है ? महिका-“किन्तु इसके मूल कारण सो महाराज ही है। यह तो ममुकरण करती रही- यथा राजा तथा प्रसा-अन्म १२