पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१६५

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मासीसरा। से हो गया। अय युर विग्रह सो कुछ दिनों के लिये शान्त हुए। चलो हम लोग भी महोत्सम में सम्मिलित हों।" (एक चोर से दोनो जाते है दुमी मोर स वपरत का प्रवेश) पसन्तक-" फटी हुई योनुली भी कहो यमती है। एक । कहावत है कि "हे मोची के मोपी । यह सब प्रहों की गड़पड़ी है। ये एकयार ही इतना पड़ा काण्ड उपस्थित कर देते हैं । कहाँ साधारण प्राम्यपाला-हो गई थीगजरानी । मैं देख पाया । वही मागधी ही सो है। पत्र प्राम की पारी लेकर पेचा करती है और लपकों वेले साया करती है। ग्रमा भी कभी मोजन करने के पहिले मेरी ही तरह भाँग पी लेवे होंगे दमी सो ऐसा सनटफेर में, किन्तु परन्तु तथापि यही कहावत 'पुनर्मूषिका मष' एक चूहे को किसी रूपी ने दया फरफे शेर मनाया वह उन्हीं पर गुर्राने लगा। जब मपटने लगा तो घट से वापाजो बोले 'पुनर्मपिको __ मव' मा पचा फिर धूछा यन जा । और वह रह गये मोची के मोची। महादेवी वासवदचा फो यह समाचार.पज्ञ कर सुनाऊँगा। हमने तो उसे पहिचान लिया, है अपश्य वही। परे उसी के फेर में मुझे देर हो गई। महाराज ने वैवाहिक उपहार मेले में सो अब वो पीछे पड़ गये ! मनु मिझेंगे। ममी बासी शेगा तो क्या मिलेंगे तो-पलें। फिन्सु, नगर में वो भालोकमाला दिखाई देती है। सम्भवतः वैवाहिक महोत्सव का अमी अन्य - नहीं हुआ, तो पलें। (पटपरिवर्तन) (पाता है)