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पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१६६

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दृश्यसातवा, स्थान--प्रामफानन । (भाम्रपाठी मागम्पो ) मार्गघो-(प्रापही आप बाहरी नियति कैसे कैसे दृश्य देख- ने में आये, कमी पैलौ को चारा देवे देसे हाथ नहीं थकते थे। कमी अपने हाथ से जल का पात्र सफ उठाकर पीने से सकोच होता था। फमो शील का पोम एक पैर भी महल के बाहर चलने में रोफना या और फमो निर्लजा गणिका का मामोद मनोनीत हुभा । इस पुद्धिमता का कहीं ठिकाना है। वास्तविक रूप से परिवन फी इच्छा मुझे इतनी विपमसा में से आई। अपनी परिस्थिति को सयम में न रखकर 'ध्यर्य महत फा ढोंग मेरे रदय ने किया, फाल्पनिक सुख लिप्सा ही में पड़ो---उसी का यह परिणाम है। स्रो सुलम एफ स्निग्धसा, सरलता की मात्रा कम होगाने से जीयन में फैसे पनावटी भाष आगये ! जो अब केवल एक सफोर- दायिनी स्मृति के रूप में प्रवशिष्ट रह गये। (गाम) । 'नाई अपना स्वपन दिखाता, नमित्र परना दिसाय कोई। न तो लिये माल पर है कोई, पकी इस दुख में हाय रोई। ' पलट गये दिन थे प्रेम पाले, नशा की पाहारही न गी । न सेब उसली, म नदि मुम्प की, माऊली चादर सिवाय सोई॥