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पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१७४

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मसावरानुः। प्राधा भाग उसमें पिता की छाया नहीं थी-पिता ! इसलिये आधी शिक्षा अपूर्ण ही होगी।" छलना-(प्रवेश करके चरण पड़ती है) "नाय ! मुझे निमय हुआ कि वह मेरी उदएडवा थी । पद मेरी फूट चातुरी थी, दम्म फा प्रकोप था। नारो जीवन के स्वर्ग से मैं पचिव कर दी गई। ईट पत्थरों के महल रूपी पन्दीगृह में मैं अपने को धन्य समझने लगी थी । दण्डनायक ! मेरे शासक ! क्यों न उसी समय शील और विनय के नियम भर करने के अपराध में मुझे आपने वस्ड दिया । आमा फरके सहन करके जो मापने इस परिणाम की यत्रणा के गर्भ में मुझे डाल दिया है, यह मैं भोग चुकी। अब उवारिये विम्बसार-"छलना ! यह ऐना मेरो सामथ्र्य के बाहर था । अप देखू फि जमा करना भी मेरे सामर्थ्य में है कि नहीं ?" पासपी-(प्रवेश फरके "नाथ श्रम में ने इसको दयह दे दिया है, यह मातृत्व पद से ध्युव की गई है अम इसको आपके पौत्र की धात्री का पद मिला है। एक राजमाता को इतना पड़ा एएस फम नहीं है। पत्र भाग को जमा करनाही होगा [7 विम्यसार-"पासयी ! तुम मानवी हो कि देवी ?" । वासवी-"या है। मैं मगप के मम्राट् को राजमहियो हूँ। और, यह छलना मगध के रामपौध की पई, है और यह कुणीक मेरा पपा इस मगध का युवराज है और भापफो भी in विम्यसार-"मैं अच्छी तरह अपने को जानता है, वासवी !"