पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१७६

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अजातशत्रु। विम्यसार-'अच्छा रे पा! देखेंगा तेरी दुष्टवा । उठो वत्स अजास जो पिता है यह क्या कमी भी पुत्र को समा ! केवल शमा ! माँगमे पर नहीं देगा। तुम्हारे लिये यह कोश सदैव खुला है । उठो छलना तुम्हें भी। (प्रातरात्र को गले लगाताहै।) पाo-"तष मेरी यारी!" बिम्बसार-"हा कह भी , पप्पा.-"वस चलकर मगध के नवीन राजकुमार को स्नेह चुम्बन भाशीर्वाद के साथ दीजिये । मिम्बसार-"तो फिर शीघ्र चलो (ठकर गिर पड़ता है) ओह । इसना सुख एक साथ मैं सहन नहीं कर सकूँगा। सुम सत्र है.बहुत देर को आये ॥ (कॉपता) [गौतम का प्रवेश । अभय हाय उठाते हैं। ] .. (आलोक के साथ यवनिकापसन)