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पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/२२

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कथा प्रसन्न सरी यह कि शतानीक इस अध्याय में दोनों स्थान पर "भपर-शतानीका करके लिखा गया है। "अपरशतानीफ" फा विषय-विरागी होना, विरक्त हो जाना, लिखा है। सभवत' पह शतानीक उदयन के पहिले का, फौशायी का, गजा है। अथवा बौखों की कथा के अनुसार इसी की रानी का क्षेत्रज पुन उपयन है, किन्तु यहाँ माम-इस राजाका-परतप है। जनमेजय के माद जो अपरशतानीका पाता है वाह'भ्रम सा प्रतीत होता है, क्योंकि अनमेजय ने अश्वमेघ यज्ञ किया था, इसलिये जनमें मय के पत्र का नाम अश्वमेधदत्त होना कुछ सगस प्रतीत होता है। अतएव कौशांबी में इस दूसरे शवानीक की ही वास्तविक स्थिति क्षात होती है, जिसकी स्त्री किसी प्रकार [गदपक्षी द्वारा हरी गई। उस राजा शतानीक के विरागी हो जाने पर उदय-गिरि की गुफा में सत्पन्न मिजयो वीर उदयन अपने बाहु यल से फौशादी का अधिकारी हो गया। इसके बाद फौशादी के सिंहासन पर क्रमश अहीनर [नर-वाहनदत], खरपाणि, नरमित्र और मक ये चार राजे गैठे। इसके बाद फौशामी के राज-परा ण पाठव-यश फा अवसान होता है। - अर्जुन से सासयों पीढ़ी में उदयन का होनातो किसी प्रकार मे ठोक नहीं माना जा सकता, क्योंकि अर्जुन के समकालीन जरासघ फे पुत्र सहदेष से लेफर, शिशुनाग पश से पहिले के जरासघ-यश २२ राजे मगध के सिंहासन पर बैठ चुके हैं। उनके याद १०शिशुनाग यश के यैठे, जिनमें छठे और सातवें रामों के सम- 'कालीन उदयन थे। तो क्या एफ वश में, उतने ही समय में, 'सीस पीदियाँ हो गई, जितने में कि दूसरे देश में केवल .सास ही पीदियाँ हुई? यह बात कदापि मानने योग्यं न दोगी। समवस इसी विपमया को देखकर भीगणपति शास्त्री ने "अभि